वह राम भक्त तुलसी ब्रजधाम जा रहा है

वह राम भक्त तुलसी ब्रजधाम जा रहा है
वह राम भक्त तुलसी
ब्रजधाम जा रहा है
दोहा – राम श्याम दोउ एक है
नहिं कछु अन्तर शेष
उनके नयन गंभीर है
इनके चपल विशेष
वृन्दावन के वृक्ष को
मरम न जाने कोय
डाल डाल और पात पात पे
राधे राधे होय
वह राम भक्त तुलसी
ब्रजधाम जा रहा है
जहाँ राधे राधे राधे
हर कोई गा रहा है।
धुन राधे राधे मानो
पत्तों से आ रही है
कण कण से आ रही है
जन जन से आ रही है
क्या दिव्य कीर्तन है
क्या दिव्य कीर्तन है
आनन्द आ रहा है
जहाँ राधे राधे राधे
हर कोई गा रहा है।
गोविन्द को तुलसी ने
माथा झुका दिया क्या
बोला पुजारी हस के
पाला बदल लिया क्या
भक्ति में बल है कितना
भक्ति में बल है कितना
तुलसी बता रहा है
जहाँ राधे राधे राधे
हर कोई गा रहा है।
दोहा – मैं क्या कहूँ छवि आप की
तुम भले बने हो नाथ
तुलसी मस्तक तभी नवे
जब धनुष बाण हो हाथ।
गोविन्द कृष्ण देखो
अब राम बन गए है
उनको प्रणाम करके
तुलसी जी कह रहे है
मेरा राम ही यहाँ पर
मेरा राम ही यहाँ पर
मुरली बजा रहा है
जहाँ राधे राधे राधे
हर कोई गा रहा है।
वह रामभक्त तुलसी
ब्रजधाम जा रहा है
जहाँ राधे राधे राधे
हर कोई गा रहा है।