कौन लंका जला पाता अगर हनुमान ना होते

कौन लंका जला पाता अगर हनुमान ना होते
कौन लंका जला पाता
वानर सब घबराये
कैसे होगा पार ये सागर
मन ही मन सकुचाये
जामवंत ने बजरंगी से
जाकर करी गुहार
सिवा तुम्हारे कौन ये सागर
कर पायेगा पार।
कौन लंका जला पाता
अगर हनुमान ना होते
पता न सीता का लग पाता
अगर हनुमान ना होते।
लाँघक़र के समंदर को
पहुँचे लंका के वो अंदर
देख़ हनुमान की ताकत
काँप उठा था दशकंधर
कौन संकट मिटा पाता
अगर हनुमान ना होते।
आके शक्ति लगी ऐसी
मूर्छा खा गए लक्ष्मण
संजीवन बूटी लाने को
गए वो दौड़ के तत्क्षण
कौन पर्वत उठा पाता
अगर हनुमान ना होते।
राम का नाम लेकर के
जो इनके पास जाते है
उनके जीवन की तकलीफें
ये पल भर में मिटाते है
कौन सूरज निगल पाता
अगर हनुमान ना होते।
कौन लँका जला पाता
अगर हनुमान ना होते
पता न सीता का लग पाता
अगर हनुमान ना होते