दाता नहीं श्री राम के जैसा

दाता नहीं श्री राम के जैसा
दाता नहीं श्री राम के जैसा
सेवक नहीं हनुमान के जैसा।
आँख उठाकर देखा जग में
सारा जगत भिखारी
काम क्रोध मद लोह मोह में
लिपटे नर नर नारी
पाप नहीं कोई अभिमान के जैसा
दाता नही श्री राम के जैसा।
पढ़कर देखो रामायण बस
एक ही बात सिखाये
वो नर पार उतर जाए जो
अपना फर्ज निभाए
धर्म नहीं मानव सम्मान के जैसा
दाता नही श्री राम के जैसा।
सुख चाहो तो सुमिरन करलो
राम प्रभु का प्यारे
‘संजू’ एक दिन जाना होगा
दोनों हाथ पसारे
तप नहीं हरि गुणगान के जैसा
दाता नही श्री राम के जैसा।
दाता नहीं श्री राम के जैसा
सेवक नहीं हनुमान के जैसा।